नमो नारायण। ' त्रिपिण्डी श्राद्ध ' जैसा कि नाम है ,वैसा उसका सहज अर्थ आप कर सकते है ।त्रयाणाम पिंडाणाम समाहारः त्रिपिंडी इस व्युत्प्ति के अनुसार इस श्राद्ध में तीन पिंड होते है ।जो लोग विधिवत श्राद्ध नही करते या जिनका विधिपूर्वक श्राद्ध किसी कारणवश नही हो पाता अथवा जिनका श्राद्ध किया ही नही गया हो ,ऐसे लोग मृत्यु के पश्चात प्रेतयोनि में पहुँच कर नाना प्रकार के कष्ठ और विघ्न उपस्थित करते है ।अतः उससे रक्षा के लिये औऱ अपने परम अभ्युदय के लिये त्रिपिण्डी श्राद्ध करना अति आवश्यक है ।
शास्त्रों के मतानुसार भूत-प्रेत ,पिशाच औऱ पितृदोष तथा परिवार में आकस्मिक अशांति होने पर त्रिपिंडी श्राद्ध करना चाहिए । त्रिपिंडी श्राद्ध ज्ञात अज्ञात प्रेतों के लिये सर्वथा उपयुक्त श्राद्ध है इसमें कोई संशय नही । यह श्राद्ध किसी भी मास की दोनों पक्षों (कृष्ण पक्ष ,शुक्ल पक्ष )की पंचमी अष्टमी ,एकादशी त्रयोदशी ,चतुर्दशी औऱ अमावस्या तिथि को करना चाहिए ।
धर्मशास्त्र के अनुसार गृहस्थ के लिये श्राद्ध अति आवश्यक है ,जिनका श्राद्ध नही होता उनकी गति कदापि नही होती । ऐसे ही लोग प्रेत आदि अशुचि योनियों में पतित होकर अपने संबंधी व परिवार के लोगों को नाना प्रकार की पीड़ा एवं कष्ठ ,द्ररिद्रता ,दीनता प्रदान करते है ,जिसके कारण गृहस्थ जन अव्यवस्थित औऱ व्यग्रचित होने से अपने दैनिक कर्म का भी सम्पादन करने में असमर्थ हो जाते है , जिससे परिवार सदैव दुःखी एवं विपन्न ,परेशान रहा करते है ।
त्रिपिंडी श्राद्ध करने से नाना प्रकार के पीड़ा एवं सभी बाधाएँ पूर्णरूप से शांत हो जाती है , पितृदोष के शांति के लिये , अकाल मृत्यु को प्राप्त जीव के लिये ,भूत प्रेत व नाना प्रकार से परेशान व्यक्ति के लिये यह श्राद्ध सदैव उपयुक्त व माग़लकरिक सिद्ध होता है । इसमें कोई संशय का स्थान नही है ।