ॐ नमो नारायणाय गदाधराय नमः सत्य सनातन के महानुभावो तथा वेद- पुराणों ने मातृ:देवो भवः पितृ: देवो भवः कहा है बल्कि इन्हें ही प्रथम पूज्य देव तथा श्रेष्ठ माना है । क्या हम इनकी अवहेलना करके भौतिक या आध्यात्मिक सुख पा सकते है ? नहीं हम यह जान ले कि समस्त उन्नति के मूल का भंडार इनके प्रति हमारी सेवा ,कर्तव्य व् अनन्य श्रद्धा में ही समाहित है । भारतीय सांस्कृतिक आर्यस परम्परा में गया श्राद्ध का महत्व -हमारा भारत बर्ष तीर्थो का देश है । तीर्थो कि अपनी अनन्त महिमा है । वे मानव को पवित्रता ,प्रेम और शांति से भर देती है ये तीर्थ स्थल हमारे जीवन में नूतन चेतना और स्फूर्ति का संचार करते है। यह हमारे ऋषियों -महर्षियो ,संतो -महात्माओ के तपः स्थल रहे है । तीर्थ ज्ञान और भक्ति के केंद्र रहे है । यह तीर्थ परम्परा की देंन है । अद्द्भूत आदर्श पूर्ण जीवनी से ओत-प्रोत भारत के गौरव ज्ञान का रहस्य छुपा मिलता है अपनी भारतीय सांस्कृतिक परम्परा में गया तीर्थ की अनंत महिमा है इनमेभी भौगोलिक ,धार्मिक ,आध्यात्मिक कारण है । चारो ओर से पर्वत मालाओ से घिरा हुआ यह नगर फल्गु गंगा के तट पर बसा है यह फल्गु सतत प्रवाहित अंतः सलिला से संबोधित है । दक्षिण मध्य में भगवान् विष्णु का विशाल प्रांगण और मंदिर है मंदिर परम दर्शनीय एवं चमत्कारी और तथा प्रभावकारी है । गर्भगृह में श्री विष्णु पाद की चरण प्रतिष्ठा है। फल्गु किनारे पर बसा यह विशाल अति प्राचीन और परम पावन मंदिर पितरों के श्राद्ध का केंद्र रहा है । यह परम्परा सनातन भारतीय संस्कृति में अति प्राचीन है कहिए तो सनातन है अनादि काल से यह कायम है । यह कर्मकांड की विशिष्ठ पद्धति है , जिसमे श्रेष्ठ धर्म का अनुपालन करते है और परम्परा के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते है पौराणिक कर्म की चेतना हमें वेदांत की ओर अग्रसर करते है यह ऋषियों की सूझ रही है आज भी हमारा जीवन इन से आलौकित हो रहा है घने कोहरे में भी मार्ग मिल रहा है श्राद्ध कर्म की अपनी एक अद्द्भूत महिमा है श्राद्ध पितरो के प्रति श्रद्धा पूर्वक किये जाने वाला एक आत्मदान है जो आत्मलब्धि का एक विशिष्ट साधन है हम जिन पितरों के प्रतिनिधि है ,उनके प्रति हमारा आत्म दान ही श्राद्ध कर्म का प्रायोज्य है । इसमें जीवन का मांगल्य और मूल धर्म की चेतना निहित है पिंडदान आत्मदान का प्रतीक है व्यष्टि की समष्टि में समाहित होने की क्रिया संपन्न होती है। यथा पिंडे तथा ब्रह्माण्डे। पिंडदान का अर्थ बोध अतिव्यापक है श्राद्ध लोककल्याण की भावना से अनुरंजित और अनुप्राणित है जीवन कृतार्थ होता है । यह परम्परा रामायण एवं श्रीमद्भागवत गीता से अनुमोदित है जो वेदों का सार है |
शास्त्रो में मुक्ति प्राप्ति के मार्ग प्रशस्त किए है ।जिसमे सबसे सुलभ एवम उपयुक्त्त गया श्राद्ध है,
ब्राह्मज्ञानम गयाश्राद्धम गोगृहे मरणं तथा , वासः पुसाम कुरुक्षेत्रे मुक्तिरेषां चतुर्विधा ।
ब्रह्मज्ञानेंन किंम कार्य: गोगृहे मरणेन किंम, वासेंन किं कुरुक्षेत्रे यदि पुत्रो गयाम व्रजेत।। पुत्रो को गया तीर्थ पुत्र होने कि संज्ञा और अधिकार देता है ।
गया जी मे पितरों के मुक्ति उद्देश्य हेतु होने वाले कृत्य - गया श्राद्ध ,वार्षिक श्राद्ध , तिथि श्राद्ध ,त्रिपिंडी श्राद्ध ,नारायण बलि श्राद्ध । गयातीर्थ विष्णुपाद मंदिर में मङ्गल कामना हेतु होने वाले कर्मकांड पूजनकर्म तुलसी अर्चन ,महाभिषेक, सहस्त्रनामाभिषेक , अन्यान्य अभिषेक ,रात्रि शृंगार पूजन ,इत्यादि । गया तीर्थ में श्राद्ध तर्पणपिंडदान एक दिवसीय ,तीन दिवसीय ,पांच दिवसीय ,सात दिवसीय ,सत्रह दिवसीय करने का उल्लेख है ,जो कि शास्त्र सम्मत है । आकाल मृत्यु प्राप्त जीव के मुक्ति उद्धार हेतु , भुत-प्रेत बाधा से मुक्ति , आत्मशांति , पितृ दोष निवारण हेतु विशेषतः नारायण बलि ,त्रिपिंडी श्राद्ध का विधान है । - पं गोकुल दुबे
एक दिवसीय ,तीन दिवसीय ,पांच दिवसीय ,सात दिवसीय ,सत्रह दिवसीय श्राद्ध तर्पण से तात्पर्य क्या है ? धर्म शास्त्रों के उल्लेखानुसार ये श्राद्ध कर्मकांड की विशेष पद्धति है जिसे शास्त्रों ने सर्वजन हिताय को विशेषतः ध्यान में रखा है , इस विशेष पद्धति से कोई वंचित न रहे व सदैव सबों का कल्याण हो अतः शास्त्रों ने समयानुसार ,सामर्थ्यानुसार समय सारणी प्रस्तुत कि है एक दिवसीय श्राद्ध - तीर्थ श्राद्ध के विधि को आधार व उपयुक्त मानकर करने की विधि है। एक दिवस में श्राद्ध गया जी के प्रमुख मात्र तीन वेदियों (तीर्थ स्थलों)पर कर पाना ही संभव है।
तीन दिवसीय ,पांच दिवसीय ,सात दिवसीय सत्रह दिवसीय श्राद्ध तर्पण - यह निम्नलिखित श्राद्ध 54 वेदियों (तीर्थस्थलों ) पर की जाती है जिसका विधि -विधान भिन्न है ,इतने तीर्थ स्थलों पर श्राद्ध तर्पण करने का भी महत्वपूर्ण उद्देश्य है जैसे नाना प्रकार के मृत्यु से मुक्ति प्राप्ति ,शांति प्राप्ति हेतु , नाना काल समय, युग मे , अनेक देव, ऋषि,महात्माओं का आगमन गया जी के अनेक वेदियों तीर्थ स्थलों पर हुआ ,उन तीर्थो के दर्शन हेतु,उनके पद धुली प्राप्ति हेतु ,उनके अनुसरण व परम्परा निर्वहन हेतु ऐसे अनेकों रहस्यों के कारण इन तीर्थ स्थलों पर श्राद्ध पिंडदान तर्पण करना सर्वदा उपयुक्त ,मंगलकारी , व विशेष फलदायी है । गया तीर्थ अकाल मृत्यु प्राप्त जीवों के लिये भी मोक्षदायनी तीर्थ है ।
नाना प्रकार से अकाल मृत्यु प्राप्त जीवों के मुक्ति हेतु शास्त्रों ने अवस्थानुसार त्रिपिंडी या नारायण बलि श्राद्ध करने का दिशा निर्देश किया है ,जो कि विशेष श्राद्ध पद्धति है। जयोतिष विज्ञान के द्वारा जिनके जन्म कुंडली में पितृदोष बताया जाता है इस दोष का निवारण त्रिपिंडी या गया श्राद्ध के द्वारा ही संभव है ये शास्त्र वचन व विद्वमत मत सम्मत है ।
कब करें गया श्राद्ध ।
ॐ नमो नारायणाय नमःगयायै नमः
श्राद्धरम्भे गयायं ध्यात्वा ध्यात्वा देव गदाधर। स्व् पितृ मनसा ध्यात्वा ततः श्राद्ध समाचरेत्।।
।। गया श्राद्ध का उपयुक्त समय ।।
गयायाम् सर्वकालेषु पिंडम दधात् विचक्षणः।
अधिमासे जन्मदिनेअस्ते च गुरु - शुक्रयोः।
न त्यक्रवयं गया श्राद्ध सिंहस्थे च वृहस्पतौ । ।
गयश्राद्ध प्रकूप्रीत संडक्रान्तयादौ विशेषतः।
मीनेमेषे स्थिते सूर्ये कन्यायां कार्मुके घटे।
दुर्लभं त्रिषु लोकेषु गयायाम् पिण्डपातनं (वायु पुराण) ।।
शास्त्रों के वचनानुसार गयश्राद्ध सभी समय कर सकते है यह स्पष्ठ निर्देश है व विशेषतः अधिमास ,जन्मदिन ,गुरुशुक्र के अस्त में सिंह राशि में , वृहस्पति होने पर गया तीर्थ में पिण्डदान का त्याग न करे । मीन(चैत्र माह ) ,मेष(वैशाख माह ),कन्या (आश्विन माह),धनु (पौष माह) , कुंभ(फाल्गुन माह),मकर (माघ माह), राशि में सूर्य स्थित होने पर गया श्राद्ध(पिंडदान )करे ।। ॐ नमो नारायण । गया श्राद्ध का शास्त्रों द्वारा वर्णित समय के सम्बन्ध में वायु पुराण व अन्य पुराणों में कहा गया ।.
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